एक हिंदू भिक्षु एवं नए अल्पसंख्यक अधिकार समूहों में से एक के नेता, चिन्मय दास की गिरफ्तारी के बाद उपजे हिंसक विरोध व झड़प की घटनाएं इस बात के स्पष्ट सबूत, अगर जरूरी मानें तो, हैं कि बांग्लादेश में कानून और व्यवस्था की स्थिति नाजुक बनी हुई है। हिंसक विरोध व झड़प की इन घटनाओं के चलते चटगांव की एक अदालत में एक वकील की मौत हो गई। ‘सनातनी हिंदुओं’ का प्रतिनिधित्व करने वाले समूह (जिसे बांग्लादेश सोम्मिलितो सनातनी जागरण जोत कहा जाता है) के हजारों लोगों के विरोध प्रदर्शन की एक प्रमुख मांग है – कि मुहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार देश के उन 20 मिलियन धार्मिक अल्पसंख्यकों - हिंदुओं, ईसाइयों और बौद्धों - की सुरक्षा सुनिश्चित करे, जिन्हें इस्लामी बहुसंख्यक भीड़ द्वारा निशाना बनाया गया है। जाहिर तौर पर शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी के समर्थकों को निशाना बनाकर किए गए विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा की 2,000 से ज्यादा दर्ज घटनाओं में अल्पसंख्यक समुदाय के कम से कम नौ सदस्य मारे गए हैं और इसमें एक सांप्रदायिक कोण भी दिख रहा है। दास, जो इस्कॉन के बांग्लादेश चैप्टर से भी जुड़े रहे हैं, ने मांगों की आठ-सूत्री सूची पर प्रकाश डाला। इन मांगों में अल्पसंख्यक उत्पीड़न के मामलों की त्वरित सुनवाई; एक अल्पसंख्यक संरक्षण कानून एवं एक अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय और दुर्गा पूजा के लिए पांच दिन की सार्वजनिक छुट्टी की घोषणा शामिल हैं। सरकार ने इस संबंध में अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि, यूनुस ने अल्पसंख्यक समुदाय के प्रतिनिधियों से मुलाकात की है और ढाकेश्वरी मंदिर का दौरा किया है। इसके उलट, ऐसा जान पड़ता है कि बांग्लादेश की सेनाओं को इस किस्म के सभी विरोध प्रदर्शनों, भले ही वे वैध और शांतिपूर्ण हों, पर नकेल कसने का अधिकार दिया गया है। दास के खिलाफ मामला हिंदुओं के एक ऐसे समूह से संबंधित है, जिन्होंने कथित तौर पर भगवा झंडे फहराए थे और उन्हें बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज से ऊंचा रखा था। राजद्रोह का मामला दायर करने वाले राजनीतिक कार्यकर्ता को बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है, जिससे यह संदेह पैदा हो गया है कि इस मामले पर कार्रवाई नामुनासिब थी। ऐसे तनावपूर्ण माहौल में, एक वरिष्ठ धार्मिक व्यक्ति की संक्षिप्त गिरफ्तारी और हिरासत सिर्फ सांप्रदायिक तनाव को ही भड़काएगी।

कार्रवाइयों के साथ-साथ अदालतों के जरिए इस्कॉन समूह पर प्रतिबंध लगाने का कदम भी यूनुस सरकार की आलोचना को बढ़ावा दे रहा है। नई दिल्ली लगातार मुखर होकर बांग्लादेश से अपने अल्पसंख्यकों की रक्षा करने और एक सम्मानित व्यक्ति के साथ इस किस्म के कठोर व्यवहार से बचने के लिए कहती रही है। हालांकि, मोदी सरकार के यूनुस शासन के साथ तनावपूर्ण संबंधों की वजह से इन आहवानों को कोई खास तवज्जो नहीं मिली है। एक कड़ी प्रतिक्रिया में, बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने भारत के बयानों पर “निराशा और दुख” जाहिर किया और भारत पर हालात को “गलत तरीके से पेश करने” का आरोप लगाया। बांग्लादेश की सरकार ने दास के खिलाफ लगाए गए “विशिष्ट आरोपों” का बचाव भी किया। अगर नई दिल्ली यह सुनिश्चित करना चाहती है कि अल्पसंख्यक बांग्लादेश में ज्यादा सुरक्षित महसूस करें, तो उसे संवाद के द्विपक्षीय चैनलों को फिर से खोलने की कोशिश करनी चाहिए। भारत को यह समझना चाहिए कि उसकी आवाज़ का सम्मान सिर्फ तभी किया जाएगा जब वह सभी नागरिकों की सुरक्षा और आजादी को ठीक वैसे ही सुनिश्चित करने में सक्षम होगा, जैसा कि वह दूसरे देशों, विशेष रूप से निकट पड़ोस, जहां धार्मिक बहुसंख्यकवाद का खतरा ज्यादा है, में होने की वकालत करता है।